मैं शरीफ़ लड़की नहीं हूँ
मैं शरीफ़ लड़की नहीं हूँ
कविता लिखती हूँ
पर हाँ याद रखना
प्रेम कविता लिखने वाली लड़कियां
चरित्रहीन नहीं होती
प्रेम से तुम्हारा अभिप्राय ही ग़लत है
अस्सी वर्षीय बूढ़ी दादी
जब बिना दांतों के कुछ चबाती है
तो मुझे उनसे पहली नज़र में ही
प्रेम हो जाता है
जब मेरे दुखते सिर को दबाती है माँ
तो वो महबूब हो जाती है
तुम मोहब्बत को अश्लीलता से जोड़ना बंद करदो
वरना हर लड़की कहेगी
“मैं शरीफ़ लड़की नहीं हूँ”
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